Monday, June 16, 2025
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सुशीला हो या मूलको बाई, तेंदूपत्ता के बढ़े दाम से संग्राहकों के चेहरे में खुशियां आई

आकाशवाणी.इन

गर्मी के दिनों में हरा सोना बन जाता है आमदनी का बड़ा जरिया

इन दिनों गाँव-गाँव चल रहा तेंदूपत्ता संग्रहण कार्य

कोरबा 11 मई 2025/ इन दिनों सूरज की तपिश बड़ी तेज है। नदी नालों सहित गाँव के तालाबों में पानी कम है। भरी दोपहरी में भले ही गाँव की गलियों में सन्नाटा पसरा रहता है, फिर भी गाँव के उन अनगिनत लोगों में उत्साह है जो इन दिनों तेंदूपत्ता का संग्रहण कर रहे हैं। लोगों में तेंदूपत्ता तोड़ने का उत्साह सुबह से लेकर देर शाम तक चलता है। आसपास के जंगलों में तेंदूपत्ता तोड़ाई करते ग्रामीण, कपड़े की गठरी या बोरे में भरकर घर लौटते हैं फिर ग्रामीण घर की डेहरी, परछी में एकजुट होकर तेंदू पत्ते को गिनती कर बंडल बनाते हैं. जिसके बाद गाँव के किसी खुली जगह में फड प्रभारी की उपस्थिति में इन तेंदूपत्ता के बंडल को क्रम से सजाकर रखते हैं.

गाँव के बच्चे, महिलाएं, युवा, बुजुर्ग सभी इस काम में लगे हुए हैं। उन्हें खुशी है कि इस हरे सोने के दाम बढ़ने से उनकी आमदनी भी बढ़ेगी और जितना ज्यादा संग्रहण होगा उतना ही अधिक राशि उन्हें मिलेगी। संग्रहणकर्ताओं में खुशी है कि अब तेंदूपत्ता प्रति मानक बोरा का दाम 4 हजार से बढ़कर 5500 रुपये कर दिया गया है.

जिले के कोरबा और कटघोरा वनमंडल में बड़े भू भाग जंगल से घिरा हुआ है। इन जंगलो में और गाँव के आसपास खुली जगहों में तेंदुपत्ता भारी मात्रा में पाया जाता है। सरकार द्वारा तेंदूपत्ता संग्राहकों को दिए जाने वाले प्रोत्साहन के साथ बड़ी हुई राशि मिलने की आस से वनांचल क्षेत्र में रहने वाले ज्यादातर परिवार तेंदूपत्ता संग्रहण का कार्य करते हैं। यह उनके आमदनी का प्रमुख श्रोत में से एक है। खासकर गर्मी के दिनों में खेती किसानी का काम नहीं होता तब तेंदूपत्ते के संग्रहण से उन्हें एक अतिरिक्त आय का जरिया मिल जाता है। ऐसे ही पोड़ी उपरोड़ा क्षेत्र के दूरस्थ ग्राम दम्हामुड़ा में रहने वाले आदिवासी परिवार तेंदूपत्ता संग्रहणकर्ता देव प्रताप पोर्ते और उनकी पत्नी सुशीला पोर्ते बताते हैं कि आजकल बड़ी सुबह से जंगल की ओर निकल जाते हैं। सिर्फ वही नहीं बल्कि गाँव में रहने वाले ज्यादातर लोग तेन्दूपत्ता तोड़ने जाते हैं। सुशीला बताती है कि सुबह से दोपहर तक पत्ते तोड़ने का काम चलता है। इसके बाद इसे गठरी में बांधकर घर लाते हैं। दोपहर में खाना खाने के बाद तोड़े हुए तेंदूपत्ते को 50-50 नग पत्ते का बंडल बनाकर रखने का काम शुरू हो जाता है। पत्ते को साफ कर बंडल बनाया जाता है। घर के परछी पर बंडल बनाते हुए सुशीला के पति देवप्रताप का कहना है कि वे लोग बहुत दूर नहीं जाते। आसपास जंगल से पत्ता तोड़कर लाते हैं। परसा पेड़ के छाल से रस्सी बनाकर 50-50 पत्तो की गड्डी बनाते हैं। सुशीला बाई बाई बताई है कि इस बार की तुलना में पिछले साल ज्यादा पत्ते नहीं तोड़ पाए थे। इस बार अभी से लगे हैं। महतारी वन्दन योजना से प्रति माह एक हजार रुपए भी मिलता है और अब तेंदूपत्ता का 5500 रुपये प्रति मानक बोरा भी मिलेगा इससे उनकी आमदनी बढ़ेगी। पहले मेहनत भी ज्यादा करना पड़ता था और कीमत भी कम मिलती थी। अब दाम बढ़ने से मैं ही नहीं अन्य संग्राहक भी खुश है और बड़े उत्साह के साथ पत्ते तोड़ रहे हैं। उन्होंने बताया कि महतारी वन्दन योजना की राशि उनके बहुत काम आती है। तेन्दूपत्ता से जो राशि मिलेगी उसका उपयोग घर बनाने के लिए करने का मन बनाया है। अपने घर के आसपास तेन्दूपत्ता तोड़ने में व्यस्त दम्हा मुड़ा निवासी मूलको बाई ने बताया कि वे जितना ज्यादा पत्ता तोड़ेगी उन्हें उतनी ही राशि मिलेगी। पहले 2500, फिर 4000 और अब 5500 रुपये प्रति मानक बोरा है। यह दूर-दराज में रहने वाले ग्रामीणों के आर्थिक आमदनी का महत्वपूर्ण जरिया है। उन्होंने बताया कि रोज सुबह से तेन्दूपत्ता तोड़ने जंगल जाती है। इसे बंडल बनाकर रख रही है। यह खुशी की बात है कि अब पहले से ज्यादा पैसा मिलेगा। सुशीला बाई ने बताया कि तेन्दूपत्ता संग्राहकों का कार्ड भी बना हुआ है। इसके माध्यम से बीमा सहित पढाई करने वाले बच्चों को छात्रवृत्ति की सुविधा भी है। इन संग्राहकों ने प्रति मानक बोरा में वृद्धि के लिए खुशी और आभार जताते हुए मुख्यमंत्री विष्णु देव साय को धन्यवाद दिया है.