ये है भारत एल्युमिनियम कंपनी Ltd.: ढेंगुरनाला के जरिए जीवनदायिनी हसदेव नदी को प्रदूषित कर रहा बालको, प्राकृतिक संसाधनों से खिलवाड़ करना इनकी पुरानी आदत, संकट बढ़ सकता है क्योंकि, हसदेव नदी से लगभग 60000 घरों को की जाती है पानी सप्लाई
कोरबा/ आकाशवाणी.इन
रजगामार के जंगलों से बहकर कोरबा शहर क्या आईटीआई के समीप के पुल से होते हुए ढेंगुरनाला हसदेव नदी में समाहित हो जाता है घातक केमिकल। यह बारहमासी प्राकृतिक नाला नाला है, लेकिन अब इसके अस्तित्व पर संकट ही संकट मंडरा रहा है। बालको प्रबंधन द्वारा इसमें घातक केमिकल बहाया जा रहा है। इस नजारे को कभी भी मौके पर आकर देखा जा सकता है। आप तस्वीर में भी साफ तौर पर देख सकते हैं। हमेशा स्वच्छ रहने वाला ढेंगुरनाला का पानी अब पूरी तरह से काला हो गया है.
संभावना है कि लालघाट के समीप नाले में घातक केमिकल छोड़ा जा रहा है। पानी प्रदूषित है, इससे अत्यंत दुर्गंध भी आती है। यही पानी आगे जाकर हरदेव नदी में समाहित हो जाता है। जिससे हसदेव नदी में भी भारी प्रदूषण फैल रहा है.
स्थानीय निवासियों के लिए निस्तारी का बड़ा साधन है ढेंगुरनाला नाला, छठ में होती है पूजा
ढेंगुरनाला शहर के बीचो-बीच से बहते हुए हरदेव नदी में जाकर मिल जाता है। लेकिन अब इसका पानी पूरी तरह से काला हो गया है। यहां जाने पर तेज दुर्गंध को महसूस किया जा सकता है। यह नाला प्रदूषण के भीषण चपेट में है। इसमें घातक केमिकल मिल जाने का प्रमाण खुद नाले का काला पानी दे रहा है। लेकिन जिम्मेदार मौन साधे हुए हैं। ये सब कुछ देखकर लगता है कि बालको प्रबंधन को प्रदूषण फैलाने और मनमानी करने की खुली छूट दे रखी है। प्रदूषण और पर्यावरण संरक्षण के मामले में प्रबंधन के अधिकारी बड़ा बड़ा ज्ञान देते हैं.
इसकी वास्तविकता धरातल पर जाते ही दिख जाती है। इनकी कलई खुल जाती है। ढेंगुरनाला आसपास के निवासियों के लिए निस्तारी का एक बड़ा साधन है। आस्था के पर्व छठ में भी यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पूजा करने पहुंचते हैं. लेकिन अब ये ढेंगुरनाला भीषण प्रदूषण की चपेट में है। जिसके पानी से निस्तारी और पूजा-अर्चना तो बिल्कुल भी संभाव नही है। आप कभी भी जाकर देख सकते हैं, नाले का पानी पूरी तरह से काला हो गया है.
कोरबा में ही सर्वाधिक प्रदूषित है हसदेव
प्राकृतिक संसाधनों से छेड़छाड़ और खिलवाड़ करना बालको के लिए कोई नई बात नहीं ये उनकी पुरानी आदत है. जिले भर में बेतरतीब राखड़ फैलाना हो, इसके लिए अघोषित डंपिंग यार्ड बनाकर जाम लगाना, सड़क बर्बाद करना या
फिर चाहे वह जमीन हथियाने का मामला हो, पेड़ों की अवैध कटाई या फिर नदी नाले में प्रदूषण फैलाना। एनजीटी की भी रिपोर्ट है कि कोरबा पहुंचने के बाद ही 170 मीटर लंबी हरदेव कोरबा के 20 किलोमीटर के दायरे में सर्वाधिक प्रदूषित है। जिसमें बालकों का बड़ा हाथ है। ढेंगुरनाला के जरिए बालको हसदेव के एक बड़े हिस्से को प्रदूषित कर रहा है। नदी में सिल्ट की मात्रा बढ़ रही है। केमिकल युक्त पानी बहाया रहा है। यह बेहद घातक और चिंतनीय है.
हसदेव से घरों में पानी सप्लाई और खेतों की सिंचाई
ढेंगुरनाला के जरिए हरदेव तक जो प्रदूषण पहुंच रहा है। उसके लिए बालको पर ठोस कार्रवाई तो होनी ही चाहिए लेकिन यह और घातक इसलिए भी है, क्योंकि हसदेव नदी के पानी से ही नगर निगम क्षेत्र के लगभग 60000 घरों को पानी की सप्लाई की जाती है। प्रदूषण युक्त पानी लोगों के घरों तक पहुंचने की संभावना भी है। हसदेव नदी के पानी से ही खेतों की सिंचाई भी होती है। इसी से पावर प्लांट में बिजली उत्पादन को रफ्तार मिलती है। ऐसे हसदेव नदी को बालको प्रबंधन लगातार प्रदूषित कर रहा है। वह इस नदी के अस्तित्व पर ही संकट पैदा कर रहा है.
जिम्मेदार अधिकारियों ने दे रखी है खुली छूट
पर्यावरण संरक्षण व प्रदूषण रोकने के लिए पर्यावरण संरक्षण मंडल के अधिकारियों को कार्रवाई करनी चाहिए। लेकिन बालको प्रबंधन पर कार्रवाई करने में प्रशासन के हाथ कांपते हैं। बालकों को प्रदूषण फैलाने की जैसे खुली छूट मिली हुई है। ना कोई जांच, ना ही कोई कार्यवाही की जाती है। जबकि बालको प्रबंधन के खिलाफ कई शिकायतें की जा चुकी है। अपनी ऊंची पहुंचकर और अपने रसूख के बल पर बालको हमेशा ऐसी कार्रवाई हो सब बच निकलता है, और मनमानी जारी रहती है। जिसका नुकसान प्रकृति झेल रही है। पर्यावरण के लिए यह एक बड़ा खतरा है। बालको द्वारा किए जा रहे इस नुकसान के परिणाम दूरगामी होंगे। जिसकी भरपाई असंभव है.
