Friday, August 1, 2025
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जंगलराज: देव रूपी गजराज, परेशान क्यों है आज… ये देखिये…

कोरबा/ आकाशवाणी.इन

हाथियों के घर और जीवन से किया जा रहा खिलवाड़

तीर धनुष, गुलेल, टंगिया सहित अन्य घातक हथियारों से लोग करते हैं हमला

छत्तीसगढ़ राज्य पिछले कुछ वर्षो से हाथियों को लेकर काफ़ी परेशानी झेल रहा है। राज्य के कुछ जिले हाथी प्रभावित क्षेत्र हो चुके हैं। लगभग 15 वर्ष पहले झारखंड उड़ीसा से हाथियों का आना चालू हुआ। उसके बाद वो लगातार छत्तीसगढ़ की ओर रुख करने लगे हैं। हाथी झारखंड उड़ीसा से रायगढ़ के रास्ते आना-जाना करते हैं जहां जंगल में भरपूर मात्रा में उनके लिए भोजन और पानी आसानी से मिल जाता है। यही वजह है कि वो महीनों तक यहां रुकने लगे हैं। यह सिलसिला सालों-साल चलता रहता है और फिर कई जिलों से गुजरते हुए एमपी, झारखंड, उड़ीसा की ओर निकल जाते हैं। लोग जंगल काटते गए इसी के साथ धीरे-धीरे इंसानों के साथ हाथियों का टकराव भी बढ़ता चला गया और आज हालत ऐसे बन गए हैं कि लोग हाथियों को मारने पर उतारू हो गए हैं। इस बात को गहराई से (आत्ममंथन) समझना ज़रूरी है कि आखिरकार ऐसी स्थिति निर्मित ही क्यों हो रही है.

खबरों में लगातार हाथियों को उत्पाती या आतंक से संबोधित किया जाता है जिसके कारण आज हाथी पूरी तरह बदनाम हो गए हैं. जबकि वास्तविकता इसके विपरित लगती है। यह कहना गलत नहीं होगा कि हाथी पूरी पृथ्वी में सबसे ज़्यादा बुद्धिमान जीव है जो परिवार बना कर रहते हैं और एक जंगल से दूसरे जंगल विचरण करते हुए अपने कुनबे को आगे बढ़ाते हैं।
यहां ये समझना ज़रूरी हैं कि कुछ वर्षो में लगातार औद्योगिक विकास के चलते जंगलों की सीमाएं तेजी से घटी हैं। इसके अलावा जंगल के भीतर लोग अपना घर और खेत-खलिहान बना कर रहने लगे हैं। बचे खुचे जंगल में लोग बड़े पैमाने में पेड़ काट कर अपना घर बना रहे हैं और जब हाथियों का झुंड उसी रास्ते से विचरण करते हुए आगे बढ़ता हैं तो लोग इनको तीर-धनुष, भाला, गुलेल, टंगिया, फटका, मशाल लेकर खदेड़ते है। वहीं हाथी अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर जब उसका जवाब देते हैं तो जान-माल के भारी नुकसान की खबर सामने आती है।
बाद में लोग बोलते हैं कि हाथी ने किसी पुरुष, महिला या बच्चें को कुचल दिया भयंकर उत्पात करते हुए तबाही मचाई। कई बार ऐसा भी देखा गया हैं कि लोग सैकड़ों लोगों का दल बनाकर हाथियों का झुंड देखने के लिए जंगल के भीतर चले जाते हैं और फिर जब गुस्से से कोई हाथी दौड़ाता है तो कोई उसकी चपेट में आ जाता हैं। फिर वही लोग रोते हुए कहते हैं कि हाथी ने हमारे परिजन को मार दिया.

एक तरफ देखा जाय तो आज वास्तव में हाथियों के अस्तित्व में रहने की वज़ह से ही हमारा जंगल बचा हुआ है नहीं तो लोग जंगल में घुस-घुस कर मानव पेड़ काट लेते। लोगों को यह समझना ज़रूरी हैं कि जंगल उनका घर हैं और इंसानों ने उनके घरों में कब्ज़ा किया है। हाथियों को अगर जबरन ना खदेड़ा जाए, उनको परेशान ना किया जाए तो वो जंगल के रास्ते विचरण करते हुए निकल जाएंगे। इस बात के लिये वन विभाग लगातार लोगों को जागरुक करते रहता हैं पर गांव के लोग इस बात को नहीं समझते बल्कि उल्टा वन विभाग को बोलते हैं यह तुम्हारा हाथी है तुम अपने पास रखो। हम अपना फसल बचाएंगे और हाथी को मारेंगे। कभी कभी तो इसे ग्रामीणों के साथ वन विभाग के कर्मचारियों की तीखी नोक-झोंक तक हो जाती है.

जहां लोग गणेश चतुर्थी आने पर गांव-गांव में मूर्ति स्थापित कर पूजा-अर्चना करते है और खुशी मनाते हैं वहीं जब हाथी लोगों के फसलों को चट कर जाते हैं तो लोग उन्हें कोसते हैं। अब आप खुद ही विचार करिए कि कौन किसके जीवन के लिए खतरा साबित हो रहा है.